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Jokes for joke: 102

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#102 | Demonetisation (नोटबंदी)
चारों और नोटो का ही शोर हे
एक नारी की मन की पीड़ा का किसी को कोई लेना देना नहि हे
मेरी पीड़ा मेरी ज़ुबानी

कल म बहुत रोई थी
पूरी रात नहि सोई थी
एक एक नोट बड़ी मुश्किल से सम्भाला था
हर एक नोट के साथ रिसता बनाया था
हज़ार रुपए मेरे भाई ने राखी पर दिए थे
ग्यारह सों रुपये वो दिवाली पर भी लाया था
हज़ार रुपये माँ ने मिठाई के भी भिजवाए थे
पाँच सो रुपये भाभी ने भी दे मान बड़ाए थे
हर नोट से यादें थी जुड़ी मेरी
हर नोट बड़ी मुश्किल से बचाया था
कभी राशन से तो कभी फल सब्ज़ी से चुराया था
कभी महँगे कपड़े ना पहन दिल को सादे में लुभाया था
कभी बेटी की शादी में लगाने को बचाया था
50से 100 100 से 500
500से 1000 फिर बनाया था
हर एक नोट के साथ अपने बच्चों का भविष्य बनाया था
म ये नहि कहती मेरी पति की कमाई मेरी नहि होती
पर अपनी कमाई जैसी कोई रिस नहि होती
वो मेरी ख़ुद की कमाई थी
वो कोई काला धन नहि था
हर नोट को मने ख़ूब खंगाला था
कोई भी नोट काला नहि था
हर नोट हरा या लाल था
जिसे मने तन मन धन से बनाया था
जिसे मने 15 सालों में बनाया था
मोदी जी ने उसे 15 सकैंड में निकलवाया था
Written by a mother a sister
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