Poem On Village
मेरे गाँव में अब सावन की हरियाली नहीं बची,
यहाँ की सारी रौनक शहर का रुख कर चली,
यहाँ कागज़ की वो कश्तियाँ सारी डूब पड़ी,
यहाँ की मिट्टी से वो सौंधी खुशबू छूट चली,
अब यहाँ त्योहारों की शोरगुल भी नहीं मिली,
मेरे गांव की सारी गलियाँ अब चुपचाप हो चली,
मेरे गाँव में अब होली की पिचकारियां नहीं बची,
मेरे गाँव में अब दीवाली की किलकारियां नहीं बची,
यहाँ के बसिंदो को शहरों के धूल उड़ा ले गए,
सुन माटी! यहाँ अब वो माटी के लाल नहीं बचे,
इस पुराने बरगद की गोद थी बचपन बिताने के लिए
और वो छुट्टियों के मोहताज हैं अब यहाँ आने के लिए।
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